स्वामी बलरामदास जी महाराज

स्वामी रामशरणदास जी के अनुरोध एवं स्वामी बलराम जी के दृढ निश्चय के आगे उनके पिता को विवश होना पडा और श्री बलरामदास जी ने अपने गुरू रामदास के श्री चरणों म रहकर शिक्षा प्राप्त की । अपनी शिक्षा पूर्णकर गुरू आज्ञा से आप भ्रमण को निकले व घूमते हुए अहमदाबाद,कलोल होत हुए २० वर्ष की उम्र में सम्वत् 1989 में भाद्रपद कृष्णा 5 को अपने मित्र रामकुंवरदास जी के यहां लोदरा पहुंचे। कुछ दिनों के सत्संग से ही लोदरा निवासी आपसे काफी प्रभावित हुए और आपसे स्थायी रूप से लोदरा रहने का अनुरोध किया। ग्रामवासियों के सच्चे स्नेह और श्रद्धा ने स्वामी बलराम दास जी को बांध लिया और उन्होंने लोदरा को ही अपनी कार्यस्थली बनाया। धीरे-धीरे इस छोटे से गांव को आपने एक नया रूप दिया। यहां श्री बाला हनुमानजी उनका प्रसिद्ध आश्रम है।
स्वामी बलरामदास जी महाराज ने संत के रूप में अपनें वचनामृत से श्रीमद्भागवत का रसास्वादन अनेकों बार भक्तजनों को कराया है। और निरन्तर अबोध गति से कराते रहे हैं। मानव कल्याण कार्यों में भी आपकी गहन रूचि रही है। भगवत प्राप्ति हेतु जहां एक ओर आपने 55 फुट ऊँचा शिखर बन्द रामजी का मंदिर बनवाया है। सम्वत् 1998 में श्री हनुमान जी महाराज द्वारा स्वप्न में दिये गये आदेशानुसार साबरमती नदी के किनारे के पास की जमींन से हनुमान जी की भव्य मूर्ति लाकर प्रतिष्ठा करवाईं,वहीं दूसरी ओर सम्वत् 1995 में लोदरा में चिकित्सालय खोला, जिसमें 101 रोगियों के बिस्तर है। व निःशुल्क भोजन,कपडा एवं औषधियों का वितरण किया जाता है। संवत् 2003 में हाई स्कूल खोला। सम्वत् 2001 में नेत्र रोगियों की चिकित्या हुई सम्वत् 2004 में आयुर्वेद औषधालय का शुभारम्भ किया।
विजयराघव मन्दिर,बाला हनुमान मन्दिर ,आयुर्वेदिक औषधालय व आयुर्वेदिक महाविधालय,संस्कृत विधालय,गोशाला आदि की स्थापना आपने प्रयास से लोदरा में हुई।
लोदरा के अलावा आपने सम्वत् 2004 में दरियापुर दरवाजे बाहर में आयुर्वेद दवाखाना खोला। सम्वत् 2012 में बस्सी (जयपुर) में बहुत बडे स्तर पर रामयज्ञ महोत्सव सम्पन्न कराया। स्वामी बलराम दास जी महाराज द्वारा कई नेत्र यज्ञ करायें जिनमें भरतपुर में कराया गया नेत्र यज्ञ सबसे बडा था। इस नेत्र यज्ञ में लगभग 13000 व्यक्तियों ने लाभ उठाया।
स्वामी बलरामदास जी न केवल सन्त महात्मा है। बल्कि एक कुशल एवं अनुभवी वैध हैं। आपनें नाडीं से ही अनेकों रोगों का निदान किया है। आपके हाथ मे काफी यश है। आपने जिस रोगी को भी हाथ लगाया वह स्वस्थ होकर ही गया है। आपने सम्वत् 2014 में आयुर्वेंद विधालय की स्थापना की । सम्वत् 2018 में विश्व शान्ति यज्ञ कराया। वृन्दावन धाम सुधामा कुटी में सम्वत् 2031 में हुए अखिल भारतीय साधु समाज अधिवेशन में बलराम जी को ‘‘वैष्णरत्न‘‘ की उपाधि से विभूषित किया गया। भारत सरकार द्वारा आपको ‘‘राष्टीय सन्त‘‘एवं खंडेलवाल वैश्व महासभा द्वारा आपकों ‘सन्त शिरोमणि‘ की उपाधियों से अलंकृत किया गया। आपके वर्तमान में हजारों शिष्य हैं। अयोध्या में प्रस्तावित भव्य राम मन्दिर का शिलान्यास भी आपके कर कमलों द्वारा कराया गया हैं।
जयपुर आगरा मार्ग पर जहां आपके गुरू की समाधि है। एक विशाल भूखण्ड था। जिस पर राज्य सरकार ने अनाधिकृत कब्जा कर लिया , स्वामी बलराम दास जी ने अथक प्रयासों से वह भूखण्ड राज्य सरकार से मुक्त कराया और उस स्थान पर एक राघवशी का मन्दिर व हनुमान जी के मन्दिर का निर्माण करवाया है। यहाँ श्रीमदभागवत कथा ,प्रवचन आदि के द्वारा भक्तों को कथामृत पान कराया जाता है। समय – समय पर सभी प्रकार के रोगों के लिए शिविर आयोजित कर रोगियों को निःशुल्क चिकित्या उपलब्ध कराई जाती है।
सन्त सामाजिक कार्यकर्ता दोनों के अपने अलग कार्यक्षेत्र है। लेकिन यह अद्भूत संयोग है। कि स्वामी बलरामदास जी दोंनो ही कार्यक्षेत्रों के कुशल चित्रकार हैं। आपने मानव कल्याण के अनेकों कार्यक्रम आयोजित किये हैं। और आज भी उन्हीं में कार्यरत है। समाज आप जैसे मानव कल्याणकारी सन्त को पाकर गौरवन्वित है।